बावरी: "और तुम धीरे से जब पलकें उठाओगी ना, उस दम
दूर ठहरे हुए पानी पे सहर खोलेगी आँखें
सुबह हो जाएगी तब, ज़मीन पर" - गुलज़ार
यह तुम्हारे लिए था, और मेरे लिए..
"अपनी ही साँसों का कैदी
रेशम का यह शायर इक दिन
अपने ही तागों में घुटकर मर जायेगा" - गुलज़ार
नूर: ..इक बार कुछ यूँ हुआ..आँख खुली, सपना टूटा और सामने तुम थी...
क्या वोह सपना सच में टूटा था?
बावरी: टूटा भी हो तो क्या?
टुकड़े जोड़ कर तसवीरें बनाना शौक़ रहा है बचपन से...
मेरे साथ खेलोगी?
नूर: हाँ, याद है मुझे जब तुमने कहा था, गुट्टे खेलोगी? उछालेंगे दिल साथ, देखते हैं पकड़ पाती हो कि नहीं..
तब से मेरा यह शौक हो गया..तुम खेलोगी?
बावरी: दिल उछालने का खेल मैंने ही सिखा दिया तुम्हे?
खैर शौक़ तो शौक़ ही है..
सुनो, दिल पकड़ में आये जो,
वापस तो नहीं मांग लोगी ना?
नूर: वापस क्यूँ मांगूंगी..
दिल दे के तो देखो, जीत जाउंगी!
बावरी: जीत गयी हो,
दिल छुपा है जेब में,
उस ख़त की तरह |
नूर: वोह ख़त? पता है, पान की डिबिया में छुपा रखा है मैंने..
तुम कब आओगी? सुपारी सूखने लगी है
बावरी: सावन की पहली झड़ी के साथ देखना मेरे आने की सदा भी होगी..
तुम तैयार रखना सामान, तुम्हे साथ लेकर जाउंगी!