Originally posted as tweets with the hashtag #musings.
- जुल्फों से घिरी तेरे माथे की शिकन भी नज़र में आती हैं तो ग़ज़ब का सुकून देती हैं |
- चलो निकल चलते हैं सफ़र पर, कभी राह तुम्हारी होगी, तो कभी कदम मेरे |
- सूखी कलम को बस एक ज़ुल्फ़ की बदली चाहिए. सरपट फिर जो दौड़ती है, देखने लायक चीज़ है |
- दीवानों सी हालत में मुंह खुलवाया न करो, 'नूर' को खुदा कहना कुछ अच्चा सा तब लगता है |
- तुम भले ही सो जाओ, नींद मुझे कब आएगी? तुम्हारी मेरी उलझी साँसों से निकलने में ही सुबह हो जायेगी |
- ट्रेन की आवाज़ रात के सन्नाटे में जब कानों तक आती है, एक टीस सी उठती है |
- शायरी न समझो तो कोई ग़म नहीं, कम से कम इश्क का दर्जा उसे हवस बुला कर कम तो मत करो |
- अकेले तो बहुत सी राहें गुज़र गयीं, यूँ फ़कत दो कदम साथ चल कर मेरी आदत ना बिगाड़ो |
- और कितने दफे मेरे हाथ को ले कर हाथ में, छोड़ने का इरादा है? अब किसी और का थाम लो, कुछ चैन मिले शायद |
- सावन का पानी तो बुझाने से ज्यादा झुलसाने पर तुला हुआ है, प्यास और कमबख्त 'नूर' ने जगा रखी है |
- जान कर अनजान, दिल भी दो दिन का मेहमान, कम से कम दो दिन तो अपने हुस्न की बारिश का मज़ा ले लेने दो!
- वोह पास आकर कान में खुस्फुसाना तुम्हारा इन बादलों की गडगडाहट से कुछ कम नहीं है |
- मेरी आँखों से काजल उस रात कुछ ऐसे ही बहा था, जैसे आज रात का अँधेरा बिजली के कौंधने पर बह रहा है |
- गूंजते बादल कुछ कहानियां सुना रहे हैं आज, शायद इन्हें भी तेरे खुले गेसुओं की झलक मिल गयी है |