Wednesday, January 19, 2011

~~~... कुछ तो छोड़ दो 'नूर' ...~~~

For old time's sake and for a beautiful soul, a break from a break. :)

कुछ तो छोड़ दो 'नूर' इस जहां में जो तुम्हारी याद ना दिलाये...


सुबह चलूँ जाड़े में घर से तो कोहरा बन घेर लिया,
ऐसे ना चला काम तो ओस की बूँद बन चमक उठीं |
कभी यूँ ही गुलाब की पंखुड़ी में समा हाथ में आयीं
तो किसी दिन देखा की हवा को दे दी अपनी खुशबू |
अज़ान की बात क्या, मुझे रोज़ देती हो तुम सुनाई,
और अक्सर होता है, चूड़ियों में तुम ही खनकती हो |
हाल ही में पतंगों संग उड़ते-मचलते देखा था तुमको,
सागर की लहरें और झील का ठहराव, तुम ही तुम |


कुछ तो छोड़ दो 'नूर' इस जहां में जो तुम्हारी याद ना दिलाये...