Saturday, May 14, 2011

~~~...Guftagu...~~~

बावरी: "और तुम धीरे से जब पलकें उठाओगी ना, उस दम
दूर ठहरे हुए पानी पे सहर खोलेगी आँखें
सुबह हो जाएगी तब, ज़मीन पर" - गुलज़ार

यह तुम्हारे लिए था, और मेरे लिए.. 
"अपनी ही साँसों का कैदी
रेशम का यह शायर इक दिन
अपने ही तागों में घुटकर मर जायेगा" - गुलज़ार


नूर: ..इक बार कुछ यूँ हुआ..आँख खुली, सपना टूटा और सामने तुम थी...
क्या वोह सपना सच में टूटा था? 

बावरी: टूटा भी हो तो क्या?  
टुकड़े जोड़ कर तसवीरें बनाना शौक़ रहा है बचपन से...
मेरे साथ खेलोगी?

नूर: हाँ, याद है मुझे जब तुमने कहा था, गुट्टे खेलोगी? उछालेंगे दिल साथ, देखते हैं पकड़ पाती हो कि नहीं..
तब से मेरा यह शौक हो गया..तुम खेलोगी?

बावरी: दिल उछालने का खेल मैंने ही सिखा दिया तुम्हे? 
खैर शौक़ तो शौक़ ही है..
सुनो, दिल पकड़ में आये जो, 
वापस तो नहीं मांग लोगी ना?

नूर: वापस क्यूँ मांगूंगी.. 
दिल दे के तो देखो, जीत जाउंगी!

बावरी: जीत गयी हो, 
दिल छुपा है जेब में, 
उस ख़त की तरह |

नूर: वोह ख़त? पता है, पान की डिबिया में छुपा रखा है मैंने..
तुम कब आओगी? सुपारी सूखने लगी है

बावरी: सावन की पहली झड़ी के साथ देखना मेरे आने की सदा भी होगी..
तुम तैयार रखना सामान, तुम्हे साथ लेकर जाउंगी!

Tuesday, May 3, 2011

Unfinished thoughts

Unfinished thoughts, always disrupting
The systematic beats of life's soundtrack.

जुबां पर शिकायतों की रंगीनियाँ सजा दीं आपने,
दिल को क्यूँ कोरा सा छोड़ दिया, बेरंग इस कदर?
खूबसूरती में कभी प्यार के मीठे बोल भी घोलना,
कसम रूह अफ़ज़ा की, चार चाँद ना लग जाएँ जो!
आदत हो चली है सब सुनकर अनसुना कर देने की,
गलती आपकी नहीं, मुझे तो लगता है कानों की है!
कुछ हद तक मेरे लफ़्ज़ों ने साथ दिया तो है मेरा,
आपके चेहरे की इक मुस्कान मिलती ही रहती है |
फिर कभी गलती से आप कुछ पूछ लेती हैं मुझसे,
"ऐसा क्यूँ लिखा? क्या मतलब है इसका, 'विती'?"
दर-ओ-दीवार की नज़ाकत मैं तो समझाने से रही,
जिस दिन खड़े हों या गिर जाएँ, समझ लेंगी 'नूर' |

Life's soundtrack with its systematic beats.
Always disrupted by unfinished thoughts.