Sunday, August 14, 2011

Musings

Originally posted as tweets with the hashtag #musings.

  • जुल्फों से घिरी तेरे माथे की शिकन भी नज़र में आती हैं तो ग़ज़ब का सुकून देती हैं |
  • चलो निकल चलते हैं सफ़र पर, कभी राह तुम्हारी होगी, तो कभी कदम मेरे |
  • सूखी कलम को बस एक ज़ुल्फ़ की बदली चाहिए. सरपट फिर जो दौड़ती है, देखने लायक चीज़ है |
  • दीवानों सी हालत में मुंह खुलवाया न करो, 'नूर' को खुदा कहना कुछ अच्चा सा तब लगता है |
  • तुम भले ही सो जाओ, नींद मुझे कब आएगी?  तुम्हारी मेरी उलझी साँसों से निकलने में ही सुबह हो जायेगी |
  • ट्रेन की आवाज़ रात के सन्नाटे में जब कानों तक आती है, एक टीस सी उठती है |
  • शायरी न समझो तो कोई ग़म नहीं, कम से कम इश्क का दर्जा उसे हवस बुला कर कम तो मत करो | 
  • अकेले तो बहुत सी राहें गुज़र गयीं, यूँ फ़कत दो कदम साथ चल कर मेरी आदत ना बिगाड़ो |
  • और कितने दफे मेरे हाथ को ले कर हाथ में, छोड़ने का इरादा है?  अब किसी और का थाम लो, कुछ चैन मिले शायद |
  • सावन का पानी तो बुझाने से ज्यादा झुलसाने पर तुला हुआ है, प्यास और कमबख्त 'नूर' ने जगा रखी है |
  • जान कर अनजान, दिल भी दो दिन का मेहमान, कम से कम दो दिन तो अपने हुस्न की बारिश का मज़ा ले लेने दो!
  • वोह पास आकर कान में खुस्फुसाना तुम्हारा इन बादलों की गडगडाहट से कुछ कम नहीं है |
  • मेरी आँखों से काजल उस रात कुछ ऐसे ही बहा था, जैसे आज रात का अँधेरा बिजली के कौंधने पर बह रहा है |
  • गूंजते बादल कुछ कहानियां सुना रहे हैं आज, शायद इन्हें भी तेरे खुले गेसुओं की झलक मिल गयी है |