उसकी नज़र का पीछा करो, ज़रा देखो...
बोझल सी, ओझल सी होती जाए कहाँ?
कमबख्त ठहरती ही नहीं, रुके तो कहीं!
तुम दिन की बात करते हो? नौसिखिये!
मैंने पल-पल इसे हदें पार करते देखा है!
कितनों ने सोचा, इसे रोक लेंगे, रख लेंगे...
रुकना इसका मिज़ाज़ कभी था ही नहीं ।
यह जाए जब इसे जाने दो, छोड़ दो इसे,
तुम्हारे रोकने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।
ग़ुरूर खुद पर ऐसा कभी रखना नहीं,
तुम तो कुछ नहीं, कितने ही मारे गए ।
क्या कहा तुमने? तुम्हारा हक़ बनता है?
सब यही तो कहते हैं पहले-पहल यहाँ...
मैंने कई बसंत पतझड़ में बदलते देखे हैं,
खुद ही फैसला कर लेना जब देखोगे ।
हाँ, ठीक कहा, मैं तो बस लेखक भर हूँ,
सपनों और रोमांच की दुनिया मेरी है ।
आये लेकिन जहाँ से हैं, हम जायेंगे वहीँ...
ले जाने का काम इसी का होगा, समझे?
यह 'किस्मत' है, इतराती है, इठलाती है
और हम...हम बस इशारों पर नाचते हैं ।