Wednesday, September 29, 2010

~~~...खो जाऊँगी...~~~

तुम्हारा ख़याल ही काफी है
आज रात उसे ओढ़ कर मैं सो जाऊँगी
कुछ और ना मिला तो बस वोह एक याद लिए खो जाऊँगी


ज़रूरत हो अब तो तुम मेरी
मैं नाम तुम्हारा लेके आज सो जाऊँगी
कल तक ना गर आई लेकिन, मैं बावरी ठहरी, खो जाऊँगी


फुर्सत मिले जो, इधर आना
थपकी हो गर तुम्हारी, मैं सो जाऊँगी
दो मीठी बातें कर सको तुम तो कर लेना, बस खो जाऊँगी


इश्क ना भी हो, जुनूं ही सही,
लोरी ही गा देना 'नूर', मैं सो जाऊँगी
दो पल पास आना, नज़रें 'विती' से मिलाना, मैं खो जाऊँगी




तुम्हारा ख़याल ही काफी है
आज रात उसे ओढ़ कर मैं सो जाऊँगी...

Sunday, September 26, 2010

~~~...Neon...~~~

She comes and she goes like no one can
She comes and she goes
She's slipping through my hands
She's always buzzing just like
Neon, neon
[Neon - John Mayer]



एक तरफ बिखरीं यादें गुज़रे कल की
तो दूसरी तरफ नये दिन का नज़ारा...
आज खुमार यह कौन सा है, बताओ?


कच्ची सी नींद पड़ी अभी ख्वाइश को,
'नूर' को दरकिनार यूँही रूह ने किया है...
आज गुबार यह कौन सा है, बताओ?


तड़पते अल्फाज़, उलझते ख्वाब, लेकिन
'विती' को दवा भी ना दे चारागर, पूछे...
आज बुखार यह कौन सा है, बताओ?

Friday, September 17, 2010

~~~...Closer...~~~

two steps forward
one step back
closer.

आज तो मुझे खुद से फिर मिलने दो
जाने किस गली के मोड़ पर यूँ ही
एक बार छोड़ आई थी वो लिबास
जिसे पहन आधी ज़िन्दगी गुज़री थी


मिलना चाहती हूँ अपनी पहचान से
हाँ वो पुरानी सही, है तो मेरी ही ना?
टुकड़ा है जो गिरा मुझसे टूट कर कभी
ज़रूरी है तलाश उसकी बहुत मेरे लिए


पहेली हूँ मैं, और मेरे हिस्से हैं बिखरे
जोड कर इनको एक तस्वीर उभरेगी
बस उस को देखना है, खुद से मिलना है
खुद से प्यार करती थी मैं, याद है मुझे...


two steps forward
one step back
closer.

Thursday, September 2, 2010

~~~...पुराने जूते के डिब्बे में ख्वाईशें रखीं थीं...~~~

कहीं दूर से तुम्हारी आवाज़ चली आई
मेरे कानों पर दस्तक देने कल रात फिर


बहुत दिनों बाद याद आया कि मैंने तो
पुराने जूते के डिब्बे में ख्वाईशें रखीं थीं 


बिना सोचे समझे कदम फिर वहीँ चले
जहाँ ना जाने कि हज़ारों कसमें लीं थीं 


ऐसा ही बारिश का मौसम था, गीला,
सीलन आ गयी थी दीवारों में अचानक 


तुमने छज्जे पर बुलाया था ख़त में अपने
वहां तुम नहीं थीं, मेरा कुछ सामान था 


उंगली से उतारा, चांदी का छल्ला था
साथ गुज़ारी रात का भी किस्सा था 


तुम्हारी मनपसंद किताब के पन्ने बिखरे
हमारी यादों का वहां बाज़ार लगा था 


'विती' का बावरापन थोड़ा उभरा था
और 'नूर' कि ख़ामोशी कि शुरुआत थी 


कहीं दूर से तुम्हारी आवाज़ चली आई
मेरे कानों पर दस्तक देने कल रात फिर 


बहुत दिनों बाद याद आया कि मैंने तो
पुराने जूते के डिब्बे में ख्वाईशें रखीं थीं...