यादों से भरे हुए, सियाह पन्ने पलटने का वक़्त था,
थोड़ा सोच कर कुछ उठाए और कुछ जला दिए |
ज़िद कर के मैंने उसे सुनाने को किया था मजबूर |
जाने कहाँ से उठाई थी कहानी उसने एक अनकही,
शायद किसी किसान के बेटे से जिसे वोह पढ़ाती थी |
फसल की कटाई के बारे में थी कहानी, अजीब सी,
सुनाते-सुनाते जिसे वोह सो भी गयी थी, पर मैं नहीं |
कहानियां तो और भी बहुत सी सुनाई गयीं थी मुझे,
कभी इतना ध्यान मैंने दिया नहीं, ख़ास लगीं नहीं |
दूसरी एक कहानी मैंने ही बनायी थी किसी के साथ,
नदिया के पार जाने की जुस्तजू वाली एक कहानी |
श्याम काका का तांगा, नीम के पेड़ के नीचे चबूतरा,
तरबूज़ की फांकों के पैसे देने के लिए लड़ना-झगड़ना |
मेरे लिए पेड़ से आम कोई तोड़ रहा था, गा रहा था |
अब वोह दूसरा ज़माना लगता है, और वोह परायी |
तीसरी कहानी लिखी जा रही है, रास आ रही है |
बातों ही बातों में बनती गयी, चलती गयी इस बार |
मुझे थामे हैं बाहें और मेरी ख्वाहिशें हो रही हैं पूरी,
ज़रुरत भी नहीं रहती कभी-कभी कुछ भी कहने की |
आँखों से दास्तानें कई बनती जाती हैं हर दिन अब,
जो बचता है वोह लब सुन लेते हैं लबों से चुप्पी में |
आवाज़ कानों में शहद घोलती हुई मुझे छेड़ती है,
मैं माज़ी से दूर, नयी कहानी की एक किरदार हूँ |
कहीं टकरा गया अतीत मेरा राहों में अब तो क्या?
नए-पुराने लोग, एक नोवेल का शायद हिस्सा हैं |