यादों से तुम्हारी इक शकसियत सी बना चली हूँ,
एक पन्ने के दो सिरों को जोड कर उन्हें खोलना...
परत दर परत मोड़ कर उसको खिलौना कहना,
कुछ यूँ ही किया मैंने भी तुम्हारे ख्यालों के साथ...
सच जो नहीं था उसी पर विशवास किया हर दम,
आँखों ने सामने दिखायीं तसवीरें, जिन्हें झूठा कहा...
घडी भर कदम थिरके बावरे से रागों की जिद पर,
सूखे से, सुर्ख होठों ने फिर चुप्पी का ऐलान किया...
आरज़ू-ऐ-'नूर', तमन्ना-ऐ-दिलबर, वगेरह वगेरह,
बासी से अब हैं लगते सारे यह पकवान, बेस्वादी...
ख्वाइशों से निजात जो आज इस बेरुखी ने दे दी है,
दो जून की रोटी में आराम से 'विती' करेगी गुज़ारा...
आँखों ने सामने दिखायीं तसवीरें, जिन्हें झूठा कहा...
घडी भर कदम थिरके बावरे से रागों की जिद पर,
सूखे से, सुर्ख होठों ने फिर चुप्पी का ऐलान किया...
आरज़ू-ऐ-'नूर', तमन्ना-ऐ-दिलबर, वगेरह वगेरह,
बासी से अब हैं लगते सारे यह पकवान, बेस्वादी...
ख्वाइशों से निजात जो आज इस बेरुखी ने दे दी है,
दो जून की रोटी में आराम से 'विती' करेगी गुज़ारा...
The feelings clearly understood and maybe reciprocated to utmost extent...
ReplyDeleteishq mein gum ka bhi apna adab hai
ReplyDeletekabhi bewafa ko bewafa nahi kehte
घडी भर कदम थिरके बावरे से रागों की जिद पर,
ReplyDelete...
and
आरज़ू-ऐ-'नूर', तमन्ना-ऐ-दिलबर, वगेरह वगेरह,
बासी से अब हैं लगते सारे यह पकवान, बेस्वादी...
ख्वाइशों से निजात जो आज इस बेरुखी ने दे दी है
liked it...........esp khwaishon se...
यादों से तुम्हारी इक शकसियत सी बना चली हूँ,
ReplyDeletewow, gulzar saab spends min 10 rewriting on his 1st line. i'm sure, he'd feel proud if he wrote that line.
what a line!
a different emotion.... like! :)
ReplyDeleteeach & every line has been crafted beautifully viti..bt together they some did not seem in harmony...it was more of poetry in prose.
ReplyDeleteअब और किसका कीजिये दुनिया में ऐतबार...दिल सा रफीक वक़्त पे आँखें बदल गया...
ReplyDeleteThis one tells a story...Yeah! I have lived this one... Beautiful!
ReplyDeletethank you everyone :)
ReplyDelete@adee: bahut khoob likha hai :)
@neerja ji: i am glad you liked it :)
@roy: gulzar saab ki to baat hi kuch aur hai :)
@nabeel: badiya likha hai :)