Tuesday, March 29, 2011

Bleeding Blue!

छुट्टी ली है आज ऑफिस से मिन्नतें कर,
लेकिन देखो जान, बुरा ना मान जाना!
तुम्हारी खातिर सारे दिन-ओ-रात मेरे,
लेकिन यह शाम तो क्रिकेट को कुरबां!
बल्कि सुनो, आओगी मैच देखने तो मैं
शौपिंग करने कल ही चलूँगा जहाँ कहो!
एक दिन तुम भी तो देखो कि दीवानगी
क्या चीज़ है | नीले रंग में होगी दुनिया |
मोहाली का माहौल गरमाया सा होगा,
ठंड होती शायद हाथ भी सेंक लेते, खैर!
हिंदुस्तान-पाकिस्तान भिड़ रहें हैं आखिर,
कोई कैसे इस मैच को मिस कर सकता है?
और तो और उड़ती-उड़ती सी खबर मिली,
हम जीते तो 'पूनम' का चाँद भी चमकेगा!

Saturday, March 26, 2011

~~~...अब बहने दो...~~~

My mind is coming apart;
At the seams, lies undone.

सिलाई खुलती सी गयी, मैंने भी सिरा खींचा ,
फिर कुछ देर हुई, उखाड़ा पेड़ जिसे था सींचा |

The endless white wall &
My head collide. Thump.

आज दिमाग जवाब दे गया, कुछ देर के लिए |
होश सच में मुझे छोड़ गया, कुछ देर के लिए |

Here cries the pain. Look,
There's the rain.  Go, run.

बारिश में मिला कुछ पल का सुकून रहने दो ,
बहुत रोका तुमने इस नदी को, अब बहने दो |

My mind is coming apart;
At the seams, lies undone.

Sunday, March 20, 2011

~~~...गुलदस्ते भी रख छोड़े थे...~~~

चंद सीढियां क्या बना दी अपने घर तक पहुँचने को,
कोई अब ऊपर आना ही नहीं चाहता मिलने मुझसे |
खुद बैठे हैं बहुमंजिला इमारतों में झांकते हुए कबसे, 
अब कोई मिलने आएगा, तब कोई मिलने आएगा |
उनके लिए न केवल ऊँचाइयाँ लांघी थी मैंने, बल्कि
फूलों से भरे गुलदस्ते भी रख छोड़े थे दरवाजों पर |

'विती,' बस एक ही काम अब कभी ना करना तुम,
कभी 'नूर' से भी, वर्जिश की उम्मीद ना रखना तुम |

Saturday, March 5, 2011

~~~...अब अलविदा...~~~

Me :
...lines from it:
उसे फिर लौट कर जाना है यह मालूम था उस वक़्त भी,
जब शाम की सुर्ख-ओ-सुनहरी रेत पर वो दौड़ती आई थी...
और लहराके यूँ आगोश में बिखरी थी,
जैसे पूरे का पूरा समुन्दर लेके उमड़ी हो...
-गुलज़ार

can you add to it?
as in मालूम था ... मगर?
अब क्या?

...


ठिठुरती सी शाम में कहाँ वो जाती और कहाँ मुझे अकेले आता चैन...

कॉफ़ी के बहाने उसे थोड़ी देर रोका,
'थोड़ी देर' रात भर में तब्दील हुई,
'रात भर' से चार दिन हो चले फिर |

'चार दिन' न हुए, जैसे किसी ने Wells की टाइम मशीन थमा दी हो...

उसका गुज़रा, मेरा आने वाला कल;
बीच की रहगुज़र उभरने सी लगी...
केवल हम दोनों के ज़हन ही में |

एक रात और तीन मुलाकातें | दोनों को आने वाली दूरी की खबर थी...

मैं किताबें, सपने, रोमांच ढूंढती थी,
तो वो शायद मनोरंजन का ज़रिया...
लोग हमें शक की निगाह से देखते थे |

'नूर' की आवाज़ पर फ़िदा 'विती' | उसे मेरी सादगी से बहुत लगाव था...

गुलाबों का, कुछ गानों का, शौक था,
नज़रों का उसकी असर कुछ शोख था...
उन्हीं आँखों से रात कईं अश्क बहे थे |

सालों हो जाते हैं खोजते, जो चार दिन में हम जी गए | अब अलविदा |