Me :
...lines from it:
उसे फिर लौट कर जाना है यह मालूम था उस वक़्त भी,
जब शाम की सुर्ख-ओ-सुनहरी रेत पर वो दौड़ती आई थी...
और लहराके यूँ आगोश में बिखरी थी,
जैसे पूरे का पूरा समुन्दर लेके उमड़ी हो...
-गुलज़ार
उसे फिर लौट कर जाना है यह मालूम था उस वक़्त भी,
जब शाम की सुर्ख-ओ-सुनहरी रेत पर वो दौड़ती आई थी...
और लहराके यूँ आगोश में बिखरी थी,
जैसे पूरे का पूरा समुन्दर लेके उमड़ी हो...
-गुलज़ार
can you add to it?
as in मालूम था ... मगर?
अब क्या?
...
ठिठुरती सी शाम में कहाँ वो जाती और कहाँ मुझे अकेले आता चैन...
कॉफ़ी के बहाने उसे थोड़ी देर रोका,
'थोड़ी देर' रात भर में तब्दील हुई,
'रात भर' से चार दिन हो चले फिर |
'चार दिन' न हुए, जैसे किसी ने Wells की टाइम मशीन थमा दी हो...
उसका गुज़रा, मेरा आने वाला कल;
बीच की रहगुज़र उभरने सी लगी...
केवल हम दोनों के ज़हन ही में |
एक रात और तीन मुलाकातें | दोनों को आने वाली दूरी की खबर थी...
मैं किताबें, सपने, रोमांच ढूंढती थी,
तो वो शायद मनोरंजन का ज़रिया...
लोग हमें शक की निगाह से देखते थे |
'नूर' की आवाज़ पर फ़िदा 'विती' | उसे मेरी सादगी से बहुत लगाव था...
गुलाबों का, कुछ गानों का, शौक था,
नज़रों का उसकी असर कुछ शोख था...
उन्हीं आँखों से रात कईं अश्क बहे थे |
सालों हो जाते हैं खोजते, जो चार दिन में हम जी गए | अब अलविदा |
Awesome!
ReplyDeleteNice post. keep posting :)
ReplyDeletewell answered. Very nice.
ReplyDeletevery well expressed... :)
ReplyDeleteYou are always good with your pen.... :)
ReplyDeletewhile reading i wished if I could read more... and more!!! A sort of "magnetic" work!
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