Monday, October 24, 2011

क्या करे 'बावरी'?

कमी सी है कुछ आज धूप में...
रौशनी फैली तो है सभी जगह,
जाने क्यूँ मुझे अँधेरा दिखता है ?  
आज आसमान रोता सा लगे है |

सुकून दुनिया भर का क्यूँ फकत
उस की बाहों में समाया है, बोलो?

अब जब वोह करीब हो कर भी 
पास नहीं मेरे, तो करूँ क्या मैं?
सपनों में मिल तो लूं, लेकिन...
नींद कमबख्त उसके जाने के 
बाद से ही लापता हो गयी!

दिमाग में एक अटके से record 
की तरह साथ बिताए पल बस
बार-बार घूमते ही जा रहे हैं,
मुझे तडपाये जा रहे हैं, रोज़ |

ऐसे मंज़र में क्या करे 'बावरी'?
बस और पागल हुए जा रही है |


6 comments:

  1. Aap yeh sab likte bhi hai?? Good read. Sabka man baavra!! :)

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  2. Kabhi dekha hain,
    suraj ko pooloun ke angaan,
    Apne badan ko bhigotie,

    Kabhi dekah hain,
    Raath ko,
    Din ki ahoun mein martien,

    kabhi dekah hain,
    khwaab ko haqeeqath se ladte,

    kabhi dekah hain nazar ke ummeed ko,

    Soh yeh kehtien, Kehtien margaye,
    Swapna louta do mera,
    Swapna louta do mera.


    :)

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  3. this was a beautiful ..such a heartfelt expressing your love with yourself :) ..

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  4. सुकून दुनिया भर का क्यूँ फकत
    उस की बाहों में समाया है, बोलो?

    Bahut Bahut khoob. Loved it !!!!

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