कल रात बरस गयीं बूँदें |
कुछ आँखों से और कुछ
बाहर बादलों से गिरीं |
बरसने का सबब पूछा,
खामोश रहीं, टपक गयीं |
चुप्पी उनकी गूंजती है |
तुम्हारी ख़ामोशी, 'नूर'
यूँही मुझे तरसाती है |
ज़हन में समा जाती है |
मैं क्यूँ ना दूर जाऊं तुमसे?
क्यूँ ना मैं आजमाओं तुम्हें?
हक़ कुछ है मेरा भी, शायद |
ना छोड़ना मुमकिन 'विती'
ना ही रहना उसके साथ,
हिस्सों में बंटी ज़िन्दगी |
Sunday, May 23, 2010
Tuesday, May 18, 2010
~~~...फर्क बेवफा और हरजाई में…~~~
बिखरी सी लट कहीं
बादलों की गहराई में
मासूमियत अंगड़ाई की
है बच्चों की जम्हाई में
कभी नज़रें चुराना तेरा
ढ़लते सूरज की रुसवाई में
दिखाई देती हैं तेरी आँखें
हर मंज़र की परछाई में
‘नूर,’ मिलें तो सोचना कभी
फर्क बेवफा और हरजाई में…
Wednesday, May 12, 2010
~~~...Some sleep I trade...~~~
Some tiny make-believe castles I made
Are back to haunt me as goodbyes fade.
Silent like the night, startled and afraid,
Some spaces forgotten, your eyes invade.
Two disjointed verses, and a soft serenade
To listen to your voice, some sleep I trade.
Saturday, May 1, 2010
~~~...कुछ लिखते हैं आज...~~~
आसमान पर चलो
कुछ लिखते हैं आज
ख्वाइशों की
स्याही से हम...
थोडा तुम लिखना
थोडा मैं लिखूंगी
शायद कुछ बातें
सुलझा लेंगे...
दे सकेंगे कुछ
ख़्वाबों को शकल
उड़ते पंछियों से
भी करेंगे गुफ्तगू...
बावरे कुछ इरादे
'विती' के हैं यह
इनायत लेकिन
है यह 'नूर' की...
आसमान पर चलो
कुछ लिखते हैं आज...
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