महफिलों में जा बैठे
चैन जब थे लुटा बैठे
कुछ सूझता नहीं था
ग़ैर से राज़ जता बैठे
ज़िन्दगी कमबख्त ये
इसे गुनाह बता बैठे
खैर इक शख्स से मुलाकात हुई
हम तो 'पल' में दास्ताँ सुना बैठे
पहले-पहल जो उनसे बात हुई
बिन सोचे यार पर्दा भी उठा बैठे
बहुत दिन बाद फिर बरसात हुई
हर फ़िक्र अब 'बावरी' भुला बैठे...
Beautiful, as always :)
ReplyDeletewow kya likhti hai yaar maa kasam :) lovely
ReplyDelete:)
ReplyDeletemain sirf sochta tha Viti ko pyar ho gaya hai.;)
ReplyDeleteमहफिलों में मिलती थी वो
ReplyDeleteबातें चुलबुली करती थी वो
जाने क्या-क्या सोचती थी वो
राज़ जहां के खोलती थी वो
अपनी ही दुनिया में रहती थी वो
कितनी रातें न सोती थी वो
एक दिन राज़ उसने ऐसे बताये
फिर जाने कहाँ मुझसे खोयी थी वो
बहुत दिन बाद आज बरसात हुई
तो जाने क्यों फिर याद आती है वो...
Amazing :)
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