This is vintage for me. Well kind of! :D It was written in the year 2006, when I used to have another blog. I thought I would revisit it again. What do you think?
अपने गेसुओं में मुझे खोने दे तू
अपनी बाहों में मुझे सोने दे तू
अरसों का प्यासा ढूंढता हूँ आब को
अपनी नज़रों के जाम मुझे पीने दे तू
जिद है तेरी ऐसी कि ना आये सामने
दिख जा कभी, मुझे अब जीने दे तू
चाँदनी सा चमके तन जब मिले झलक
ऐसे हसीं मंज़र का मज़ा मुझे लेने दे तू
कभी मेहरबान बन मेरी गली से गुज़र
मोहब्बत की इक मिसाल मुझे देने दे तू
तुझे क्या मालूम मुस्कराहट तेरी क्या है
अजब-ग़ज़ब मीठा दर्द मुझे सहने दे तू
तेरी बातें भी जगा देती हैं कैसा खुमार
चेहके से, बहके से हाल में मुझे रहने दे तू
माना मैं नहीं हूँ तेरे लायक ए 'नूर,' पर
राज-ऐ-'विती' क्या है मुझे कहने दे तू
ख्वाइश है ज़माने को भूल मिल जा मुझसे
बना ले अपना, एहसासों में मुझे बहने दे तू
वाह वाह! वाह वाह!
ReplyDeletewanted to say something similar to Shraddha's comment with all respect to your lovely poetry !! Amazing :)
ReplyDeleteHow can you write such a poem that evokes the exact sentiments in the exact proportion! Beautiful :)
ReplyDeletebrilliant work!! Love the word-play. I'm subscribing to your blog now.
ReplyDeletethanks everyone :)
ReplyDelete@shraddha and @ladynimue: i get that a lot from girls/women. i don't get it :D what if i am not a guy? is it because you'd want a guy to say these things? lol.
@nidoo: i try :) thank you!
@gaurav: glad you liked it! thanks for subscribing! :D