Thursday, October 21, 2010

~~~...अब क्या करूँ...~~~

तुम्हारे बारे में इतना लिख चुकी कि खुद से उब चुकी हूँ
तुम्हे कभी सराहना आया ही नहीं, अब क्या करूँ?

हाँ पता है मुझे कि तुमने नहीं कहा था लिखने को मुझे
इन दास्तानों का, लेकिन बोलो तो, अब क्या करूँ?

हाथ उठती हूँ लिखने को, आदतें कुछ और लिखने ही ना दें
ज़िम्मा लिया है कुछ किताबों का, अब क्या करूँ?

या तो इबादत लिखी जाए इन हाथों से, या शिकायतें
'नूर' मुझे दरकार-ऐ-रोज़गार है, अब क्या करूँ?

मजबूरी भी देखो कि बेपरवाह से परवाह कि उम्मीद लिए
'विती' फिरे मारी-मारी, बावरी, अब क्या करूँ?

4 comments:

  1. Lovely piece of poem.. Seems ur madly in love :)

    Keep writing..

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  2. *superlike*
    Reminds me of a billboard I saw on a metro station..
    "नज़र हटती ऩही तेरे चेहरे से..नज़ारें हम क्या दखें."

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  3. lovely!
    more mature than many read previously!
    :)

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