Sunday, October 10, 2010

Ghost

You'll never see me,

Though I've always been here.

Your eyes pierce my flesh,

Past the person that's real.

Others you love,

You hold, want to feel,

And I'm just a ghost,

Unloving, unreal.

Thursday, October 7, 2010

~~~...आओ...~~~

ज़बरदस्ती तो नहीं है, ना आना चाहो ना आओ,
रुला तो दिया है, अब जाना तुम्हें हो, चले जाओ...


कुछ जुड़ता सा नहीं, सब टूटा लगे है आज यहाँ
गर तलाश पूरे की है, इस गली को भूल जाओ...


आशियाना नया बनेगा जब, न्योता भेजूंगी ज़रूर
छोडो अभी, तब तक के लिए तुम मुझे भूल जाओ...


थक गए कुतर-कुतर के तारें फ़ोन की पंछी, बन्दर
वाह! बात ना करने का यह बहाना बढ़िया, जाओ...


तब बात चलती थी 'नूर' की, अब भी हाल वही है
पर 'विती' की छुप्पी के चर्चे हैं जारी अभी, जाओ...

Saturday, October 2, 2010

The last page of my book of quotes

I really wanted to share this because the depth of this monologue is something that I am still trying to fathom.  The whole deal about the life is the transcript of a conversation that took place a while ago.  The narrator was extremely sleepy.  And profound?

Do ghadi woh jo paas aa baithe


Life is like sex.  You can enjoy it or not.
Life is a book.  Ruskin Bond's book.  Half imagination, half reality.  We want to take up the imagination and not reality.
Life is a tabla.  However you play it, it will sound the same.  Slowly, will sound that way, and the same with fast.  And then it will tear. It will end.  Deemak happens, like we fall sick.
Life is what we make it.  What we want it to be.
Life is my computer's speakers.  It can be your voice.  Music.  Ghazals, rock songs.  When happy, nice songs.  Gham, sad songs.
There is nothing else in this room.


"Chaahe jis bhi naam se pukaaro mujhe,
zindagi hun tumhaari, guzaaro mujhe."

Wednesday, September 29, 2010

~~~...खो जाऊँगी...~~~

तुम्हारा ख़याल ही काफी है
आज रात उसे ओढ़ कर मैं सो जाऊँगी
कुछ और ना मिला तो बस वोह एक याद लिए खो जाऊँगी


ज़रूरत हो अब तो तुम मेरी
मैं नाम तुम्हारा लेके आज सो जाऊँगी
कल तक ना गर आई लेकिन, मैं बावरी ठहरी, खो जाऊँगी


फुर्सत मिले जो, इधर आना
थपकी हो गर तुम्हारी, मैं सो जाऊँगी
दो मीठी बातें कर सको तुम तो कर लेना, बस खो जाऊँगी


इश्क ना भी हो, जुनूं ही सही,
लोरी ही गा देना 'नूर', मैं सो जाऊँगी
दो पल पास आना, नज़रें 'विती' से मिलाना, मैं खो जाऊँगी




तुम्हारा ख़याल ही काफी है
आज रात उसे ओढ़ कर मैं सो जाऊँगी...

Sunday, September 26, 2010

~~~...Neon...~~~

She comes and she goes like no one can
She comes and she goes
She's slipping through my hands
She's always buzzing just like
Neon, neon
[Neon - John Mayer]



एक तरफ बिखरीं यादें गुज़रे कल की
तो दूसरी तरफ नये दिन का नज़ारा...
आज खुमार यह कौन सा है, बताओ?


कच्ची सी नींद पड़ी अभी ख्वाइश को,
'नूर' को दरकिनार यूँही रूह ने किया है...
आज गुबार यह कौन सा है, बताओ?


तड़पते अल्फाज़, उलझते ख्वाब, लेकिन
'विती' को दवा भी ना दे चारागर, पूछे...
आज बुखार यह कौन सा है, बताओ?

Friday, September 17, 2010

~~~...Closer...~~~

two steps forward
one step back
closer.

आज तो मुझे खुद से फिर मिलने दो
जाने किस गली के मोड़ पर यूँ ही
एक बार छोड़ आई थी वो लिबास
जिसे पहन आधी ज़िन्दगी गुज़री थी


मिलना चाहती हूँ अपनी पहचान से
हाँ वो पुरानी सही, है तो मेरी ही ना?
टुकड़ा है जो गिरा मुझसे टूट कर कभी
ज़रूरी है तलाश उसकी बहुत मेरे लिए


पहेली हूँ मैं, और मेरे हिस्से हैं बिखरे
जोड कर इनको एक तस्वीर उभरेगी
बस उस को देखना है, खुद से मिलना है
खुद से प्यार करती थी मैं, याद है मुझे...


two steps forward
one step back
closer.

Thursday, September 2, 2010

~~~...पुराने जूते के डिब्बे में ख्वाईशें रखीं थीं...~~~

कहीं दूर से तुम्हारी आवाज़ चली आई
मेरे कानों पर दस्तक देने कल रात फिर


बहुत दिनों बाद याद आया कि मैंने तो
पुराने जूते के डिब्बे में ख्वाईशें रखीं थीं 


बिना सोचे समझे कदम फिर वहीँ चले
जहाँ ना जाने कि हज़ारों कसमें लीं थीं 


ऐसा ही बारिश का मौसम था, गीला,
सीलन आ गयी थी दीवारों में अचानक 


तुमने छज्जे पर बुलाया था ख़त में अपने
वहां तुम नहीं थीं, मेरा कुछ सामान था 


उंगली से उतारा, चांदी का छल्ला था
साथ गुज़ारी रात का भी किस्सा था 


तुम्हारी मनपसंद किताब के पन्ने बिखरे
हमारी यादों का वहां बाज़ार लगा था 


'विती' का बावरापन थोड़ा उभरा था
और 'नूर' कि ख़ामोशी कि शुरुआत थी 


कहीं दूर से तुम्हारी आवाज़ चली आई
मेरे कानों पर दस्तक देने कल रात फिर 


बहुत दिनों बाद याद आया कि मैंने तो
पुराने जूते के डिब्बे में ख्वाईशें रखीं थीं...

Thursday, August 26, 2010

~~~...ऐ ज़माने, ग़म क्या?...~~~

मौसम कि नमी तेरी आँखों में झलक रही है
धुंधली हकीकत कतरों में यहाँ छटक रही है


थामे हुए हूँ चेहरा, 'नूर' जिसे नाम है दिया,
बिखरी लट गिरती-गिरती सी अटक रही है


ना मैं हूँ होश में, ना है उसे खबर औरों की,
मदहोशी है, बेरुखी बस थोड़ी खटक रही है


उसका हो कर ना होना, रोज़मर्रा का रोना,
यह दास्ताँ बिन किताब यूँही भटक रही है


सजा दे दो 'विती' को, ऐ ज़माने, ग़म क्या?
बेपनाह रूह वैसे भी कब से फटक रही है...

Friday, August 20, 2010

~~~...repeat...~~~

rage.  hate.  melting.  love.

repeat.

this cycle is your gift to me.
i will break it, soon.

you'll be hurt, of course.
i will be miserable too.

rage.  hate.  melting.  love.

repeat.

i tried to break the cycle.
i failed, will try again.

you escaped it last time.
this time, you're in.

rage.  hate.  melting.  love.

repeat.

you were hurt, so was i.
we're friends now.

neither of us can escape.
we're both messed up.

rage.  hate.  melting.  love.

repeat.

how long can we go on?
it hurts everyday.

the 'noor' is dying here.
'viti' withers too.

rage.  hate.  melting.  love.

repeat.

rage.  hate.  melting.  love.

repeat.

repeat.

repeat.

Friday, August 13, 2010

~~~...आरज़ू-ऐ-'नूर', तमन्ना-ऐ-दिलबर, वगेरह वगेरह...~~~



यादों से तुम्हारी इक शकसियत सी बना चली हूँ,
एक पन्ने के दो सिरों को जोड कर उन्हें खोलना...
परत दर परत मोड़ कर उसको खिलौना कहना,
कुछ यूँ ही किया मैंने भी तुम्हारे ख्यालों के साथ...

सच जो नहीं था उसी पर विशवास किया हर दम,
आँखों ने सामने दिखायीं तसवीरें, जिन्हें झूठा कहा...
घडी भर कदम थिरके बावरे से रागों की जिद पर,
सूखे से, सुर्ख होठों ने फिर चुप्पी का ऐलान किया...


आरज़ू-ऐ-'नूर', तमन्ना-ऐ-दिलबर, वगेरह वगेरह,
बासी से अब हैं लगते सारे यह पकवान, बेस्वादी...
ख्वाइशों से निजात जो आज इस बेरुखी ने दे दी है,
दो जून की रोटी में आराम से 'विती' करेगी गुज़ारा...